दूसरा इश्क़ | मंजरी सोनी
सुनो,मुझे दोबारा इश्क़ हो गया हैं हा,सही सुना तुमने के मुझे फिर ये हवा ने
सुनो,मुझे दोबारा इश्क़ हो गया हैं हा,सही सुना तुमने के मुझे फिर ये हवा ने
”सारा सामान निकाल कर जॉंच लो और जमा दो,ध्यान रहे कल सुबह कुछ परेशानी ना
वो जो बीत गया है बचपन तुम उसे बुला लिया करो, जहाँ कहीं मौका मिले तुम
लो आगये समाज के ठेकेदार बात करने मेरे हक़ की ।। अब ये करेंगे बात
दबे पाव ख़ामोशी से ऊँची-नीची सीड़ियों से होते हुए ,तुम शहर के बाहर वाले टूटे-फूटे
कल पार्क में उम्र के दो पड़ाव को झूला झूलते देखा, नादानी अौर समझदारी को
अब जाना मैंने के जाना उसका ज़रूरी था। दर्दनाक हीं सही लेकिन उस हादसे का