कुछ लकीरें खींचते खींचते कागज़ पर एक तस्वीर उभर आई लगा कोई अपना है पहचान वाला बिछड़ा हुआ घमखवार कोई उसकी आँखों में अपना माज़ी दिख रहा था मुझे उसकी खुशबू गुज़रे वक़्त का एहसासContinue reading
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लफ्ज़ और दोस्ती | मनिंदर सिंह
सियाह रात की तनहाई में अक्सर भटकते हुए लफ्ज़ मिल जाते हैं कुछ जाने पहचाने से कुछ एक दम पराए कुछ पुरानी दलीलों को पुख्ता करते कुछ नऐ अफ़सानों की बुनियाद रख जाते हैं कुछContinue reading