मुझे लगता है, हम एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझते हैं। हाँ शायद… उसने कह कर मुंह फेर लिया। पर मैं चाहता हूँ, थोड़ा और वक़्त.. उसने बात काटते हुए कहा, देख लो, कहीं ऐसा न हो मुझे समझने के बाद मुझसे नफरत हो जाये तुम्हें.. अब इसकी कोई गुंजाइश नहीं… ‘अच्छा’ वो… क्यों? खैर मैंने भी कोशिश की कि तुम्हें ज्यादा वजह न दूँ, मुझे नफरत करने की… वो अचानक ही बोल पड़ी।
आज फिर उन्ही पुरानी बातों को लिखते लिखते पेन की श्याही ख़त्म हो गयी, वैसे जैसे उस ऱोज लफ़्ज ख़त्म हो गये थे। कहना चाहता था तुमसे, पर कह न सका कि नफरत कैसे हो सकती वो भी उस शख्स से जिसे हम मोहब्बत करते हैं? हाँ, तुमसे नफरत की कोई गुंजाइश कैसे होती, मोहब्बत जो हो गयी थी। ऐसा कब हुआ, यह नहीं पता लेकिन बस हाँ तुमसे मोहब्बत हो गयी, तुम इतना समझ लो, बस एक और बेनाम सा ख़त तुम्हारे नाम उन अधूरी बातों के साथ जिन्हें मैं किसी से कह नहीं पाता।
708total visits,2visits today
lovely words, full of feelings…. ur words are to be felt not to be commented on….
Thank you for your encouraging words
ohh realy jo feeling itne ache se express krte hn vo hi nhi smjhte