
कितने ही दफ़े | निकिता राज पुरोहित | फेथ इन लव
कितनी ही दफ़े खुद को समझाया,
तू अब नहीं पलटेगा।
पर इस दिल ने भी वहीं पुराना दोहराया,
वो धडकन है, ज़रूर लौटेगा।
कितनी ही दफ़े अश्कों से झुटलाया,
उनकी वजह तेरी कमी नहीं।
पर इन अश्कों ने भी वहीं पुराना बतलाया,
मोहब्बत है तभी तो नमी है कहीं।
कितनी ही दफ़े नज़रों को तेरी तस्वीर से चुराया,
समझाकर कि अब ये वो चेहरा नहीं।
पर इन नज़रों ने भी वही पुराना आइना दिखाया ,
टिक कर तुझपे मैंने पाया खुद को वहीं।
कितनी ही दफ़े दुआ से तेरा नाम मिटाया,
सोचकर कि तु अब इसका हिस्सा नहीं।
पर खुदा ने भी वही पुराना तरीका अपनाया,
उसके बिना पुरा ये दुआ का किस्सा नहीं।
-निकिता राज पुरोहित

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Pahale chhand me kavita ki poori jaan basti hai mano! Bahut khoob nikita ji.