जो मिलती थी उस दीवाली, आज वो खुशी नहीं मिलती।
जब माँ अपने बचाये पैसों से कपड़े दिलाती थी और बाबा लेकर लोन घर में स्कूटर लाते थे।
फिर उन कपड़ों को पहन इतराना और बाबा के पीछे स्कूटर पर उल्टा बैठ कर जाना।
आज भगवान का दिया सब कुछ है पर वो खुशी नहीं मिलती।
जो मिलती थी उस दीवाली पर आज वो खुशी नहीं मिलती।
जब दादी की सारी पेंशन हमारे लाड चाव में चली जाती थी, पटाखों से भरा कार्टून भी तो दादी ही दिलाती थी,
वो सफाई का मुआयना करने जब दादी आती थी और फिर मेहनत देख खूब सराहना
फिर उन पटाखों को छोड़ कर खूब मजा लुटाना,
और फिर थक के चूर होने पर भी वो चेहरे की रंगत ना जाना,
आज भगवान का दिया सबकुछ है पर वो दादी का दुलार नहीं मिलता।।
जो मिलती थी उस दीवाली पर आज वो खुशी नहीं मिलती।
जब बैठ कर पूरा परिवार दीवाली में मिठाई का मेनू बनाता था।
माँ के साथ रसोई में माँ का हाथ बटाता था, माँ बन जाती थी हैडशेफ़ हम हेल्पर बन जाते थे।
फिर लगा के भगवान को भोग जम कर खाते थे।
करते थे कुछ माँ की तारीफ कुछ नुक्स भी बताते थे।
आज भगवान का दिया सब कुछ है पर वो माँ के हाथ की मिठाई नहीं मिलती।
जो मिलती थी उस दीवाली पर वो खुशी नहीं मिलती।
मिल जाती जो तब, जब ज़िन्दगी कुछ अभाव में थी, जब पैसों की कुछ तंगी सी थी।
जब हर नई चीज लेने को घर में महीनों बैठक होती थी और सलाह मशवरे का घंटो दौर चलता था।
आज भगवान का दिया सबकुछ है पर वो खुशी नहीं मिलती है।
जो थी उस दीवाली पर।।
झूठ बोलते हैं वो लोग जो कहते हैं कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है।
मैं वो खुशियां नहीं खरीद पाता हूँ।
अनमोल थी वो खुशियाँ उनका कोई मोल नहीं लगा पता हूँ
कोशिश करता हूँ कुछ नई खुशियाँ बनाने की कुछ और मोती यादों के धागे में सजाने की।
पर साथ नई कहानियों के मैं पुरानी यादों को ज़हन में घूम जाता हूँ।
मैं उन यादों को कभी भूल नहीं पाता हूँ।
(सबको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं)
कोशिश की है कुछ ज़हन में आआये ख्यालातों को कागज़ पर उकेरने की, कुछ भूली बिसरी यादों को सहेजने की)
-दीप्ति पाठक

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बहुत ही बढ़िया
शुक्रिया❤