
ख़ैर छोड़ो फिर कभी | शुभम् गोस्वामी “आग़ाज़”
क्या हमारी बात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।
इक नई शुरुवात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
सीख कर आया हूँ फिर से इश्क़ का शतरंज मैं।
अबके उसकी मात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
पाक़ मैं हो जाऊँगा छू कर तुम्हारे जिस्म को।
वस्ल की वो रात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
मान लेते हैं कि हम हिंदू-मुसलमां हैं मगर।
क्या ख़ुदा की जात होगी.?ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
मुँह में है कुछ और जिनके पेट में कुछ और है।
उनकी तहक़ीक़ात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
है तमन्ना आँख लगते ही तुझे मैं चूम लूँ।
पर मेरी औकात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
रोएगा ‘आग़ाज़’ तो आँखों से अश्कों की जगह।
नज़्म की बरसात होगी.? ख़ैर छोड़ो फिर कभी।।
-शुभम् गोस्वामी “आग़ाज़”

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