
हार कैसे मान लूँ | मुसाफिर तंज़ीम
अभी गिरा ही तो हूँ
टूटा तो नहीं हूँ
इतनी जल्दी
हार कैसे मान लूँ
अभी तो लड़ना शुरू किया है
लड़ाई देर तक चलेगी
बदन से रिसते लहू
और कुछ चोटों को
अपना अंजाम कैसे मान लूँ
इतनी जल्दी हार कैसे मान लूँ
ज़माने की बातों में आकर बहक जाऊँ
अपना सपना ख़ुद तोड़कर निकल जाऊँ
इन बातों की जंजीरों का
ख़ुद को गुलाम कैसे मान लूँ
इतनी जल्दी हार कैसे मान लूँ
वो मंज़िल नहीं है
ज़िद है मेरी
उसे पाए बिना
भला मैं
हार कैसे मान लूँ
-मुसाफिर तंज़ीम

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