
गुस्ताख़ मुरीद | निकिता राज पुरोहित
गुस्ताखी करने का इरादा न था हमारा,
पर इस ज़बान ने सी कर इक लंबा अर्सा था गुज़ारा।
अब जब सारा दर्द बिखेर ही दिया है,
माफ़ कर जाने दो, कुछ इतना भी बुरा नहीं किया है।
याद है? कितनी ही दफ़े मैंने तुम्हारे आसुओं को पौंछा था,
जब तुम्हारी खूबसूरत मुस्कराहट को किसी ने नौंचा था।
तुमसे नहीं रखता हूँ मैं कोई भी उम्मीद,
तन्हाई का जो बन कर रह गया हूँ मैं मुरीद।
-निकिता राज पुरोहित

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