ख़ैर, छोड़ दो | अमन सिंह
कितना आसान है यह कह देना कि ‘छोड़ दो’ शायद यह दुनिया सा सबसे आसान
कितना आसान है यह कह देना कि ‘छोड़ दो’ शायद यह दुनिया सा सबसे आसान
‘फ़र्क नहीं पड़ता है’ कहने से कितना फ़र्क पड़ता है, कभी सोचा है तुमने? हर
तुमने जब भी मुझे गले लगाना चाहा है, मैंने तुम्हारी बाहों में खुद को सौपने
याद है तुम्हें, कुछ हफ्तों पहले.. शाम के वक़्त साथ बैठे हुये, तुमनें मेरा हाथ
पिछले कई हफ्ते सिर्फ इसी जद्दोजहद में गुजार दिये कि आखिर तुम्हें तोहफ़े में क्या
तुम्हारी आँखों की चमक से मेरा राबता उतना ही गहरा है, जितना हमारे दरमियान बैठे
बस यह समझ लो कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ? हसूँ,
हाँ, यहाँ अब भी सब कुछ है। ठीक वैसा ही जैसा तुम छोड़ गए थे।
सिगरेट का जलाना भूल भी जाऊँ, पर तुम्हारा यह कहना कि तुम्हारे दिल में मेरे
पहले मैं कुछ और सोच रहा था, लेकिन अब कुछ और सोच रहा हूँ.. पर