ख़ैर, छोड़ दो | अमन सिंह
कितना आसान है यह कह देना कि ‘छोड़ दो’ शायद यह दुनिया सा सबसे आसान
बेनाम ख़त, तेरे नाम…
कितना आसान है यह कह देना कि ‘छोड़ दो’ शायद यह दुनिया सा सबसे आसान
कैसा होता अगर हम सब डिब्बे होते, और हमारा जीवन कोई पोटली, और कोई होता,
“भैया, आप इतनी सिली बातें कैसे कर लेते हो?” “मैंने कब कुछ सिली कहा?” “ये
बातों की पुरानी सी नयी पेंटिंग के कुछ रंग ज़रा चटकने लगे हैं, शायद मशरूफ
‘फ़र्क नहीं पड़ता है’ कहने से कितना फ़र्क पड़ता है, कभी सोचा है तुमने? हर
तुमने जब भी मुझे गले लगाना चाहा है, मैंने तुम्हारी बाहों में खुद को सौपने
बात यदि प्रेम की हो तो सभी के हृदयों में गुदगुदी होने लगती है।यहाँ प्रेम
सर्द मौसम था और हवा भी चुभने लगी थी अब, हालाँकि ये चुभन अच्छी भी लगती
रात के 2 बज रहे थे।चारों तरफ सन्नाटा और गलियों में सरकारी लाइटों का उजाला
याद है तुम्हें, कुछ हफ्तों पहले.. शाम के वक़्त साथ बैठे हुये, तुमनें मेरा हाथ