
बेजान रिश्ता | अमृत
“तुम्हे देख कर यूँ लगता है..जैसे वक़्त में सफर कर रही हूँ..सादिया फिर से लौट आई हैं..”
“वक़्त..ये वक़्त का ही तो सफर है जो आज हम यूँ..अजनबियों की तरह मिले है..”
“तुम्हारी आँखें अब भी भूरी है न”
“आँखों का रंग भी बदलता है क्या भला..”
कशिश की कोशिश थी ये राज के चेहरे की मुस्कान ढूँढ लाने की! वही मुस्कान जिसमे ग़ुम हो जाती थी वो.!
“हाँ दुनिया बदल जाती है, लोग बदल जाते है”
राज के इस तंज की वजह कशिश बखूबी जानती थी!
“तुम अब भी नाराज हो मुझसे”
कशिश की आँखों में वही पुराना प्यार का रंग था! राज की आँखें आज स्याह थी, दो कदम आगे बढ़ गया वो!
“राज, बोलो न”
“मैं तुमसे कभी भी नाराज नहीं था”
“फिर?…”
राज ने कुछ न कहा
“फिर..?”
कशिश उसे छेड़ रही थी……
“बोलो फिर….?”
“फिर झुमका गिरा रे….हम दोनों की तकरार में…”
दोनों खिलखिला पड़े….
“आज इतने दिनों बाद यूँ हँस रही हूँ”
“तुम चाहती तो ये दिन तुम्हरी ज़िंदगी का हर दिन हो सकता था”
“चाहने से सब कुछ नहीं होता राज”
“न चाहने से कुछ नहीं होता कशिश”
ख़ामोशी……..
“जरुरी नहीं न..कि हम सब समझदार हो, देख सके अपना भविष्य, मैं समझ नहीं सकी..”
“जानती हो कशिश , रिश्ता किसी गाड़ी की तरह होता है अगर एक चक्का भी पंक्चर हुआ तो सजा दोनों को भुगतनी पड़ती है, इसलिए जब हम किसी रिश्ते में होते है तो हमारी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है”
“तुम खुल कर अपनी नाराजगी जाहिर क्यों नहीं करते”
राज की आँखों के तार उलझ गए कशिश की आँखों में….
“क्योकि मैं तुमसे अब भी प्यार करता हूँ…और प्यार में नाराजगी नहीं होती…”
कशिश अब उससे नजरे नहीं मिला सकती थी! ठंडी हवा..जुल्फे उड़ रही थी…समंदर किनारे दोनों चल रहे थे….
“भुट्टे खाओगी..”
“ह्म्म्म”
“भुट्टा”
कशिश ने कुछ कहा नहीं बस मुस्का दी…राज इस हँसी को बखूबी पहचानता था! भुट्टे पसंद भी तो थे उसको…
दोनों अब किनारे की रेत पर बैठे थे…..
“आठ साल हो गए”…..राज ने कहा…
“हम्म..वक़्त कैसे बीत जाता है न…”
“मुझे तो लगता है वक़्त बीतता ही नहीं…हम बीत जाते है..वक़्त एक।स्थैतिक चीज लगती है..तुम्हे नहीं लगती कशिश”
भुट्टे में दाँत गड़ाए वो उसकी ओर मुड़ी.. अजीब से शक्ल बनायीं और..
“तू अब भी पागल है न..”
“दो घंटे लग गए इस बार…तुम्हे तुम से तू पर आने में..”
“तुम तो अभी भी नहीं आये”
“आनेवाला ही था..पर क्या फायदा..देख तू फिर तुम पे वापस चली गयी”…
समंदर की लहरें..कभी भी शांत नहीं होती…पर उनकी उस आवाज में एक ग़ज़ब की शांति होती है..दोनों उसे महसूस कर पा रहे थे…
चल चले अपने घर ए मेरे हमसफ़र……राज का फोन बज उठा..
“जाना होगा अब..”
“यही गाना अब भी रिंगटोन रखा है”
“मेरी पसंद बदली नहीं…हाँ पसंद बदल जरूर गयी..”
“मैं तुझे हमेशा मिस करुँगी राज”
“मैं तुझे कभी मिस नहीं करूँगा…क्योकि तू आज भी मेरे पास है…हमेशा रहेगी..”
आवाजे दोनों की भारी थी..लफ्ज़ भीगे..
गले मिले…कशिश ने देखा..गुहार की..राज समझ गया…अपने लबो से छू लिया उसके होठो को……..किसी ने बाय नहीं कहा…
कहकर जाना कहाँ आसान होता है…..
चाँद अब आसमान के ठीक बीच में था…समंदर के लहरे अब भी शोर उछाल रही थी..शांति के झोले में…दोनों के भुट्टे की लड़ियाँ वहीँ…रेत में पड़ी थी…एक दूसरे के बिलकुल करीब…पर छू नहीं सकती थी…बेजान जो ठहरी….!!
–अमृत

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