आज के बाद, आज की ये बात फिर न हो।
तेरी कल की बात में मेरा ज़िक्र न हो।
मेरी आज की रात में तेरी फ़िक्र न हो।
कुछ यूँ जुदा हो हम दोनो,
तुम रहो, मैं रहूँ पर अब हम ‘हम’ न हो।
तुझे तेरी मंज़िल मुक़म्मल, मुझे मेरी जानिब मुबारक, राह चलते फिर कभी मुलाक़ात न हो।
आज हमारी आखरी मुलाक़ात है,
कल से याद रहे मेरी तेरी कोई बात न हो।
तेरी जानिब से, मेरे लिए खुदा से कोई फ़रियाद न हो,
मेरी दुआओं में अब तेरा कोई ज़िक्र न हो।
तू मुस्कुराए बेइंतेहा बहार-ऐ-गुलज़ार में।
गुलो की वो महक मुझे भी नसीब हो।
आज के बाद कभी फिर ऐसा सिलसिला न हो।
बेचैन कर दे दिन के हर पहर मुझे,
ऐसी रात न हो जज़्बात न हो।
ख्वाबों में आओ कभी तो उलटे पैर ही लौट जाना।
मेरी गली में तुम्हारा कोई नामो निशाँ न हो।
हाँ फिज़ाओ में बहार होगी, रातों में आसमा में चाँद भी होगा।
याद रहे तेरे ज़हन में मेरी मौजदूगी न हो।
बहोत है दीवाने तेरे, तेरे आशिक़ भी बहोत है।
तू होजा अब किसी की चाहे उसमे मेरे जेसी बात हो न हो।
मुझे अब किसी से ऐसी मोहोबत्त न हो, तेरी इस बेदिली में और कोई अब हलाल न हो।
आज के बाद,आज की ये बात फिर कभी न हो।
ना तुझसे मुलाक़ात हो, न तेरी मेरी कोई अब बात हो।
-प्रशांत शर्मा

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