दृण संकल्प | अभिषेक यादव | माय प्राइड इंडिया
डगर-डगर पर पहर-पहर में हम मिलते हैं नए लोगों से, मिलते हैं नए लोगों से
डगर-डगर पर पहर-पहर में हम मिलते हैं नए लोगों से, मिलते हैं नए लोगों से
निर्भया अर्थात जो भय से शून्य हो, जिसे किसी का भय न हो। वही निर्भया
मिरी खुद से अदावत हो रही है मुझे ये किसकी आदत हो रही है। हमीं
आज भी गुल्लक में कभी कभी खन्न-खना जाती है मेरी नानादानियाँ, उस सरगम से प्यारी
गड्ढे से काम नही चलेगा, कुआँ खोदो, और उसमें गाड़ दो। नंगी आग पर, नंगा
सहर की ओट से शब चुरा ले गए, वो मस्जिदों से मजहब चुरा ले गए,
सुनो प्रिय तुमसे एक बात कहनी थी लेकिन हमेशा से बेकाबू दिल पे काबू करते
मेरे कमरे की दीवारें मुझे जकरने लगी है। और अंधेरा मुझे डराने लगा है। बिस्तर
आज फिर से वो ख़्याल ज़िन्दा हो गया है जो कभी बो दिया था तुमने
छटाँक भर लम्हो की दूरी पे, तुम थी, मुट्ठी भर कदमों की गिनती पे, मैं