धुंध | जय वर्मा
लोगों को पसंद है धुंधलका, जिससे न पहचाने जा सकें चेहरे। छिपे रहें तथ्य, अस्पष्ट
लोगों को पसंद है धुंधलका, जिससे न पहचाने जा सकें चेहरे। छिपे रहें तथ्य, अस्पष्ट
रात के ग्यारह बज रहा होगा, सिरहाने तकिये के पास रखा मोबाइल बज उठा नींद मे
दिन है बदल रहा,रात है बदल रही। मौसम है बदल रहा, सौगात है बदल रही।।
हां आने लगी हो तुम मेरे सपनो में ख्वाबों के रस्ते पर चलते हुए। तुम